Monday, 4 July 2011

परेशान हूँ की परेशानी नहीं है

परेशानी का मंज़र
कहाँ गया?
सब शाँत और सूखा
क्यों हो गया?
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
जिंदगी से कहीं कुछ  है खो गया?

दिल में खलबली
क्यों नहीं है?
पैरों की चहलकदमी
क्यों रुकी है?
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या वज़ूद हमारा नाकाम हो गया?

घर में बिमारी
नहीं है,
दफ्तर में चिकचिकारी
नहीं है,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या शान्ति के बाद तूफ़ान आएगा?

आखोँ में हँसी
क्यों है?
होंठों पे गीत
क्यों हैं?
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या आईने की ज़गह पुराना फोटो देख लिया?

3 comments:

  1. "इंसान" कभी संतुष्ट नहीं होता, उसी उसी की एक बानिगी - सबसे अलग, निराली सोच के साथ मनोभावों की प्रशंसनीय प्रस्तुति - पहली बार ब्लॉग पर आया - सुखद अनुभूति - बधाई और शुभकामनाएं

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  2. राकेश जी, बहुत धन्यवाद। पढ़कर अच्छा लगा आपने जो लिखा और हौसला बढ़ाया।

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  3. हो कौन सा ज़माना मेरे ख़याल का?
    वीरान है मकाँ वो अपना वबाल का

    क्यों इंतज़ार होगा जब इख़्तियार से
    कोई न दर्द बाँटे मेरे मलाल का

    जो मौत ज़िंदगी से बेहतर लगे कभी
    है रूह का तसव्वुर आना कमाल का

    थी पड़ी ना'श जंगल के बीच संत की
    तबीब बता न पाया मूजिब जमाल का

    पैसा न देख, रुक़्'ए का रंग तू बता
    नुक़साँ नफ़ा' बनेगा गर हो हलाल का

    मज़हब बग़ैर मैं ने अल्लाह पा लिया
    रूहानियत "समा" है बा'इस जलाल का

    _________

    वबाल = visitation, nuisance
    मलाल = dejection
    रूह = spirit, soul
    तसव्वुर = thought, imagination
    ना'श = corpse
    तबीब = doctor
    मूजिब = reason
    जमाल = glow
    रुक़्'ए = (coll. रुक़्क़े) currency note
    नफ़ा' = profit, gain
    हलाल = (of) legitimate (means)
    रूहानियत = spirituality
    बा'इस = cause
    जलाल = glor

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